WORLD ASTHMA DAY: वायु प्रदूषण के कारण बढ़ रही है सांस की समस्या, अस्थमा के लक्षण और पहचान क्या है और जानिए एक ज़रूरी सामाजिक व पारिवारिक ज़िम्मेदारी डॉ. नीता जिंदल, वरिष्ठ शिशु रोग विशेषज्ञ, श्रीजी हॉस्पिटल, कोटा
विश्व अस्थमा दिवस : (WORLD ASTHMA DAY)
डॉ. नीता जिंदल वरिष्ठ शिशु रोग विशेषज्ञ, श्रीजी हॉस्पिटल, कोटा WORLD ASTHMA DAY: वायु प्रदूषण के कारण बढ़ रही है सांस की समस्या, अस्थमा के लक्षण और पहचान क्या है और जानिए एक ज़रूरी सामाजिक व पारिवारिक ज़िम्मेदारी डॉ. नीता जिंदल, वरिष्ठ शिशु रोग विशेषज्ञ, श्रीजी हॉस्पिटल, कोटा आज के समय में अस्थमा (दमा) एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या बन चुका है, खासकर बच्चों के लिए। वायु प्रदूषण, धूल, धुआँ और एलर्जी के कारण अस्थमा के मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, पूरी दुनिया में लगभग 33 करोड़ लोग अस्थमा से पीड़ित हैं। लेकिन ध्यान देने वाली बात ये है कि इनमें से लगभग प्रत्येक 10 में से 01 मरीज बच्चा होता है। यानि दुनिया में करीब 3 करोड़ बच्चे अस्थमा से परेशान हैं — और ये संख्या लगातार बढ़ रही है, खासकर भारत जैसे देशों में, जहां हवा तेजी से प्रदूषित हो रही है। । डॉ. नीता जिंदल, वरिष्ठ शिशु रोग विशेषज्ञ ने अस्थमा से बचाव और उपचार के कुछ महत्वपूर्ण उपाय सुझाए हैं। उनका कहना है कि “अस्थमा को नियंत्रित करने के लिए दो चीजें जरूरी हैं – पहला, अपने घर के वातावरण को साफ रखें, और दूसरा, बाहरी पर्यावरण को प्रदूषण मुक्त बनाने में सामाजिक सहयोग दें। अस्थमा क्या है? लक्षण, पहचान और मुख्य कारण अस्थमा फेफड़ों की एक बीमारी है जिसके कारण सांस लेने में कठिनाई होती है। अस्थमा होने पर श्वास नलियों में सूजन आ जाती है जिस कारण श्वसन मार्ग सिकुड़ जाता है। श्वसन नली में सिकुड़न के चलते रोगी को सांस लेने में परेशानी, सांस लेते समय आवाज आना, सीने में जकड़न, खांसी आदि समस्याएं होने लगती हैं। लक्षणों के आधार अस्थमा के दो प्रकार होते हैं- बाहरी और आंतरिक अस्थमा। बाहरी अस्थमा बाहरी एलर्जन के प्रति एक प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया है, जो कि पराग, जानवरों, धूल जैसे बाहरी एलर्जिक चीजों के कारण होता है। आंतरिक अस्थमा कुछ रासायनिक तत्वों को श्वसन द्वारा शरीर में प्रवेश होने से होता है जैसे कि सिगरेट का धुआं, पेंट वेपर्स आदि। अस्थमा के लक्षण :- सांस फूलना – लगातार खांसी आना – छाती घड़घड़ाना या सांस लेते समय सीटी की आवाज आना- छाती में कफ जमा होना -सांस लेने में अचानक दिक्कत होना – अस्थमा के रोगियों को रात के समय, खासकर सोते हुए ज्यादा कठिनाई महसूस होती है। इसके अलावा कुछ व्यक्तियों में एक्सरसाइज के दौरान अस्थमा (दमा) के लक्षण अधिक दिखाई देते है और ठंडी या शुष्क हवा में यह लक्षण अधिक गंभीर हो जाते हैं। अस्थमा के पहचान :- इस बीमारी के लक्षणों की समय पर पहचान और उसका इलाज कर इस पर काबू पाया जा सकता है| इस बीमारी का पता लगाने के लिए लंग फंक्शन टेस्ट किया जाता है जिसे स्पाइरोमेट्री कहते हैं। इस टेस्ट के जरिए यह पता लगाया जाता है कि कितनी तेजी से व्यक्ति सांस ले रहा है और छोड़ रहा है। इसके अलावा डाक्टर उस मरीज को एलर्जी टेस्ट कराने की भी सलाह देते हैं। अस्थमा के मुख्य कारण:- एलर्जी: धूल, परागकण, पालतू जानवरों के बाल, कॉकरोच आदि।
- वायु प्रदूषण: वाहनों का धुआँ, औद्योगिक प्रदूषण, निर्माण धूल।
- धूम्रपान और तंबाकू: सिगरेट का धुआँ अस्थमा को बढ़ावा देता है।
- जेनेटिक कारण: यदि परिवार में किसी को अस्थमा है, तो बच्चों में इसके होने की संभावना बढ़ जाती है।
- मौसम में बदलाव: ठंडी हवा, नमी या अचानक तापमान परिवर्तन से अस्थमा अटैक ट्रिगर हो सकता है।
- झाड़ू की जगह गीला पोछा लगाएं, क्योंकि झाड़ू से धूल हवा में फैलती है।
- भारी पर्दे और कार्पेट का उपयोग कम करें, क्योंकि ये धूल को जमा करते हैं।
- सोफे और गद्दों पर रेक्सीन या प्लास्टिक कवर चढ़ाएं, ताकि धूल कम जमा हो।
- पालतू जानवरों (कुत्ते, बिल्ली) को बेडरूम से दूर रखें, क्योंकि उनके बाल और लार से एलर्जी हो सकती है।
- उन्हें नियमित रूप से नहलाएं और उनके बिस्तर को साफ रखें।
- सप्ताह में कम से कम दो बार वैक्यूम क्लीनर से सफाई करें, खासकर कार्पेट और फर्नीचर पर।
- एयर प्यूरिफायर या HEPA फिल्टर का उपयोग करें, ताकि हवा में मौजूद धूल के कण और एलर्जेंस कम हों।
- रसोई और भोजन कक्ष को साफ रखें, क्योंकि कॉकरोच के मल और अंडे अस्थमा को ट्रिगर करते हैं।
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- गद्दों और तकियों को एंटी-एलर्जिक कवर से ढकें।
- बिस्तर की चादरों को गर्म पानी से धोएं।
- घर के अंदर धूम्रपान बिल्कुल न करें, क्योंकि इसका धुआँ अस्थमा को बढ़ाता है।
- मॉस्किटो कॉइल और अगरबत्ती के धुएँ से भी बचें, क्योंकि ये फेफड़ों को नुकसान पहुँचाते हैं।
- अधिक से अधिक पेड़ लगाएं, क्योंकि पेड़ हवा को शुद्ध करते हैं।
- पेट्रोल-डीजल वाहनों के स्थान पर इलेक्ट्रिक वाहनों को प्राथमिकता दें।
- सार्वजनिक परिवहन और कारपूलिंग को बढ़ावा दें।
- कचरा डस्टबिन में ही फेंकें और खुले में कूड़ा न जलाएँ।
- वेस्ट मैनेजमेंट सिस्टम को मजबूत करें, जैसा कि इंदौर (भारत का सबसे स्वच्छ शहर) ने किया है।
- भ्रांति: “इनहेलर्स नशे की तरह हैं, इनसे आदत लग जाती है।” तथ्य: इनहेलर्स सीधे फेफड़ों तक दवा पहुँचाते हैं, इसलिए ये सबसे सुरक्षित हैं।
- भ्रांति: “स्टेरॉयड्स हानिकारक होते हैं।” तथ्य: इनहेलर में स्टेरॉयड की मात्रा बहुत कम होती है और यह शरीर के बाकी हिस्सों को प्रभावित नहीं करता।
- मछली थेरेपी (फिश थेरेपी) जैसे कुछ वैकल्पिक उपचार प्रचलित हैं, लेकिन इनका कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है।
- डॉ. नीता जिंदल के अनुसार, “अस्थमा के गंभीर मामलों में इनहेलर थेरेपी सबसे प्रभावी है।”
- हवा में बहुत छोटे कणों (PM2.5) का खतरा: प्रदूषित हवा में मौजूद PM2.5 के सूक्ष्म कण सीधे फेफड़ों में जम जाते हैं। ये बच्चों की श्वसन प्रणाली को कमजोर करते हैं, जिससे खांसी, घरघराहट और सांस लेने में तकलीफ होती है।
- अस्थमा का बढ़ता जोखिम: WHO के अनुसार, प्रदूषण के कारण बच्चों में अस्थमा के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। लंबे समय तक प्रदूषण के संपर्क में रहने से फेफड़ों का विकास भी प्रभावित होता है।
- प्रतिरक्षा प्रणाली पर असर: प्रदूषण बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता को कमजोर करता है, जिससे वे संक्रमणों की चपेट में जल्दी आ जाते हैं।
- बच्चों को घर के अंदर या हवा की गुणवत्ता बेहतर होने पर ही बाहर खेलने दें।
- घर में एयर प्यूरीफायर लगाएं और पौधों से हवा शुद्ध करें।
- अस्थमा के लक्षण दिखने पर तुरंत डॉक्टर से सलाह लें।